तीजा पोला
teeja pola

तीजा पोला

teeja pola

छत्तीसगढ़ में तीजा पोला का विशेष महत्त्व है |

इस त्यौहार में महिलाये तीजा का त्यौहार मानाने के लिए अपने मायके जाती है

तथा अपने पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला उपवास रहती है|

उपवास से एक दिन पहले  रात में करू भात खाते है |

और फिर रात और एक दिन उपवास रह कर उसके अगले दिन उपवास का वत्र तोड़ते है|

इस प्रकार आप कह सकते है |

तीजा पोला एक कठिन व्रत वाली पूजा है|

तीजा पोला तिहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है
जो की तीजा के दो दिन पहले आते है| छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की इतना अधिक महत्व है|

इस दिन छत्तीसगढ़ के गांवों में बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है |
घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है

खेती किसानी में बैल और गौवंशीय पशुओं के महत्व को देखते हुए इस दिन उनके प्रति  सम्मान प्रकट करने की परम्परा है|

उनकी पूजा-अर्चना की जाती है साथ ही साथ  घरों में बच्चे मिट्टी से बने नंदीया बैल, और पोरा और  मिटटी के बर्तनों के खिलौनों से खेलते हैं।
बैलों की दौड़ भी इस अवसर पर आयोजित की जाती है।

तीजा पोला त्यौहार कब मनाया जाता है

पोला का त्यौहार भादों माह की अमावस्या को जिसे पिठोरीअमावस्याभी कहते है,
उस दिन मनाया जाता है|. यह अगस्त – सितम्बर महीने में आता है.
इस वर्ष 2020 में 19 अगस्त को यह त्यौहार  मनाया जायेगा तथा

 छत्तीसगढ़ में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते जाता  है|

यह त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाता है|

त्यौहार का नाम पोला क्यों पड़ा

कहते है की जब भगवान विष्णु  कान्हा के रूप में  इस धरती में आये थे,
जिसे हम कृष्णा जन्माष्टमी  के रूप मे मनाया जाता है. तब जन्म से ही उसका मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे |

भगवान जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के घर  रहते थे, तब से  कंस ने बार बार राक्षसों को उन्हें मारने भेजा था.|
एक बार कंस ने पोलासुर नामक राक्षस  को भेजा था, लेकिन  कृष्ण ने अपनी लीला से  मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था|

वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, और इसी  दिन से इसे पोला कहा जाने लगा.|

यह दिन बच्चों का दिन भी  कहा जाता है|

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में तीजा पोला त्यौहार मनाने का तरीका

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ बहुत सी आदिवासी  जनजाति रहती है|

यहाँ के गाँव में पोला के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है.

यहाँ सही के बैल के साथ साथ मिटटी से बनाये बैलो की पूजा की जाती है|

  • तरह तरह के पकवान इनको चढ़ाये जाते है जिसमे ठेठरी ,खुरमे कहते है|

 भारत के अन्य क्षेत्रों में तो इसे जानते भी नहीं होंगें.

पोला का त्यौहार हर इंसान को पशु और जानवरों  का सम्मान करना सिखाता है|

अगर छत्तीसगढ़ राज्य में इस त्यौहार के बारे में कहा जाये तो  पहली बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने सरकारी निवास स्थान पर इस त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया गया था|

इस मौके पर नंदी-बैल की पूजा की गई एवं  तीजा महोत्सव के लिए प्रदेश के विभिन्न् स्थानों से बहनों को आमंत्रित किया गया था साथ ही छत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेलों का भी आयोजन रखा गया था |

तीजा पोला त्यौहार मानाने का कारन

हमारे देश में त्योहारों को मानाने का मुख्य कारन किसी पौराणिक कथा से जुडी रहती है या यह उत्साह मानाने के लिए हमारे बड़े बुजर्गो ने इस प्रकार के त्योहारों ही परम्परा बने है|

इस प्रकार आप इस उत्सव को भी इन दोनों बातो से जोस कर देख सकते है

छत्तीसगढ़ में कोरोना के साथ तीजा

दोस्तों इस बार कोरोना ने छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व को काफी असर डाला है

राजधानी रायपुर सहित पुरे प्रदेश में यह पर्व आने वाले शुक्रवार को मनाया जा रहा है|

इस अवसर पर  बेटिय अथवा बहने  स्वम अपने ससुराल से  मायके को नहीं जाती बल्कि भाई अथवा पिता खुद लेने के लिए आते है|

ऐसा इस पूजा का रिवाज है लेकिन इस बार केवल फ़ोन से बात कर निमंत्रण दिया गया क्यों की आने जाने के लिए साधन बंद है |

इसलिए पास वाले बहिन ,बेटिय तो अपने मायके पहुज गये लेकिन दूर दराज वाले अपने मायके नहीं पहुज पाए

लेकिन व्रत तो रखेगे ही क्यों की व्रत पति के लम्बी आयु और उसके स्वस्थ से सम्बन्धी है

| कुवारी लडकिय इस व्रत को अपने मनपसन्द वर पाने के लिये भी रखते है|

कहा जाता है की यह व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था |

जिसके फल स्वरुप माता पार्वती को भगवान शिव जी की अर्धगिनी बंनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और इसी से प्रेरित हो कर महिलाये ये व्रत रखती है|

माता पार्वती ने भगवान शंकर के लिए अन्न जल त्याग कर कई वर्षो तक तपस्या की थी|

और इसप्रकार आज भी  यह व्रत निर्जला होता है |

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